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हीरक भस्म या वज्र भस्म
हीरक भस्म या वज्र भस्म
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हीरक भस्म (हीरा भस्म या वज्र भस्म) के लाभ, औषधीय प्रयोग, मात्रा एवं दुष्प्रभाव
हीरक भस्म (जिसे हीरा भस्म, वज्र भस्म, हीरक भस्म भी कहा जाता है) एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका उपयोग मुख्य रूप से आंतरिक व्रण, रसौली, कैंसर, हृद्शूल, भगंदर, प्रमेह, पांडू, नपुंसकता और क्षय के उपचार में किया जाता है। यह रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है और मस्तिष्क और शरीर को मजबूती प्रदान करता है। इसमें ह्रदय रक्षात्मक और ह्रच्छूल नाशक गुण भी होते हैं। इसलिए इसका उपयोग ह्रदय रोगों और हृद्शूल के उपचार में भी किया जाता है।
हीरक भस्म सभी प्रकार की वात व्याधियों (वात विकार), बढ़े हुए पित्त दोष (Pitta Dosha) और कफ दोष (Kapha Dosha) के विकारों में निवारक के साथ साथ चिकित्सकीय भूमिका भी निभाता है।
इसके अतिरिक्त, हीरक भस्म नपुंसकता, मोटापा, नालव्रण, चक्कर आने, मूत्र संबंधी विकारों, रक्ताल्पता और कई पेट संबंधी व्याधियों के उपचार के लिए भी लाभप्रद है।
घटक द्रव्य (संरचना)
हीरक भस्म में हीरे के राख के नैनो कण होते हैं।
आयुर्वेदिक गुण धर्म एवं दोष कर्म
हीरक भस्म मस्तिष्क और शरीर को ताकत देता है और रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है।
दोष कर्म
हीरक भस्म में सभी छह स्वाद होते हैं, यह तीनों दोषों (त्रिदोष Tridosha) को शांत करता है और अन्य औषधियों की शक्ति बढ़ाता है। चिकित्सकीय रूप से, इसकी मुख्य क्रिया शरीर में पित्त दोष(Pitta Dosha) के प्रभुत्व पर होती है। इसकी दूसरी क्रिया शरीर में बढ़े हुए कफ दोष (Kapha Dosha) पर देखी जाती है। यह शरीर में वसा को कम करता है, वसा संचय को रोकता है, सेल्युलाईट को तोड़ता है और संपूर्ण चयापचय में सुधार करता है।
औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
हीरक भस्म मुख्य रूप से अपने प्रतिरक्षा अधिमिश्रक, कैंसर विरोधी, रसौली नाशक, क्षयनाशक, ह्रदय रक्षक, ह्रच्छूल नाशक और दाह नाशक क्रियाओं के लिए जाना जाता है।
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कैंसर नाशक
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उत्परिवर्तजन विरोधी
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रसौली नाशक
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क्षयनाशक
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ह्रदय रक्षक
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ह्रच्छूल नाशक
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प्रतिरक्षा अधिमिश्रक
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कायाकल्प करने वाला
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अडाप्टोजेनिक
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प्रतिउपचायक
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तनाव नाशक
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कामोद्दीपक
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पीड़ाहर
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जीवाणुरोधी
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रोगाणुरोधी
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विषाणु-विरोधी
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दाह नाशक
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मोटापा नाशक
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कासरोधक
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व्रण नाशक
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शांतिदायक
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रक्तवर्धक (लाल रक्त कोशिकाओं के गठन में मदद करता है)
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ह्रदय की शक्तिवर्धक औषध
हीरक भस्म के कुछ औषधीय गुण ऊपर सूचीबद्ध हैं, लेकिन यह शरीर के सभी हिस्सों को लाभ देता है। इसकी क्रिया मस्तिष्क, मन, तंत्रिकाओं, रीढ़ की हड्डी, फेफड़े, पेट के अंगों, हड्डियों, जोड़ों, त्वचा, आदि पर प्रकट होती है। मुख्य रूप से, यह हर अंग को ताकत प्रदान करता है और हर अंग की प्राकृतिक क्रियाओं को पुनर्स्थापित करता है।
चिकित्सीय संकेत
हीरक भस्म के मुख्य संकेत रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना, अन्य औषधियों की क्रियाओं में सुधार करना, शरीर में विष के संचय के कारण आने वाली अवरोधों को समाप्त करना है। इसे प्रयोग विभिन्न रोगों में स्वर्ण भस्म (Swarna Bhasma) और अन्य आयुर्वेदिक औषधियों के संयोजन में किया जाता है। हीरक भस्म के व्यक्तिगत संकेतों में शामिल है:
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आंतरिक व्रण
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रसौली
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कैंसर
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उपापचय
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क्षय रोग
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ह्रदय में रुकावट
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हृद्शूल
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परिहृद्-धमनी विकार
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धमनीकलाकाठिन्य
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मानसिक दुर्बलता
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शारीरिक दुर्बलता
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नपुंसकता और बांझपन
इन रोगों के अतिरिक्त, हीरक भस्म निम्नलिखित स्वास्थ्य स्थितियों में भी लाभदायक है:
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मोटापा
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सिर में चक्कर आना
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नालव्रण
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बार बार पेशाब आना
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मधुमेह
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रक्ताल्पता
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पेट के विकार
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तंत्रिका संबंधी रोग
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संधिशोथ
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अस्थि मज्जा न्यूनता
लाभ और औषधीय उपयोग
हीरक भस्म जीवन शक्ति, आंतरिक बल और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। हीरक भस्म सभी जीर्ण और स्थायी रोगों में लाभदायक है। यह सभी तीनों दोषों को संतुलित और चयापचय को सही करता है। यह रोग प्रतिरोधक शक्ति, दीर्घायु, शरीर की ताकत और सामान्य सेहत में सुधार करता है।
जीर्ण रोगों के उपचार में हीरक भस्म को मिलाने से स्वास्थ्य लाभ की प्रक्रिया को गति मिलती है और उपचार के लिए दी गई अन्य औषधियों की क्रिया में सुधार आता है। इसलिए, इसे तीव्र और जीर्ण रोगों वाले सभी रोगियों को मुख्य औषधियों की क्रिया में सुधार और स्वास्थ्य लाभ में गति देने के लिए दे सकते हैं।
मस्तिष्क पर प्रभाव
हीरक भस्म का मस्तिष्क पर प्रभाव इसके 4 से 8 सप्ताह के लिए निरंतर उपयोग के बाद दिखाई देता है। यह सतर्कता, स्मृति, ध्यान अवधि और बुद्धिमत्ता में सुधार करता है। कई पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सक बच्चों की मानसिक क्षमताओं में सुधार के लिए निम्नलिखित संयोजनों में इसका उपयोग करते हैं।
उपायखुराक
हीरक भस्म1 मिलीग्राम
स्वर्ण भस्म – Swarna Bhasma5 मिलीग्राम
माणिक्य पिष्टी10 मिलीग्राम
चांदी भस्म – Chandi Bhasma10 मिलीग्राम
मुक्ता पिष्टी – Mukta Pishti100 मिलीग्राम
ब्राह्मी चूर्ण100 मिलीग्राम
यष्टिमधु (मुलेठी) – Yashtimadhu (Mulethi)100 मिलीग्राम
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इस संयोजन को दिन में एक बार सुबह खाली पेट लिया जाना चाहिए।
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यह संयोजन ध्यान अभाव सक्रियता विकार (एडीएचडी) के लिए भी विकल्प है। इस संयोजन के परिणाम 2 से 3 महीने के नियमित उपयोग के बाद दिखाई देते हैं।
हृद्शूल
आयुर्वेद में, हीरक भस्म हृद्शूल के लिए एक पसंदीदा औषधि है। यह हृद्शूल की तीव्र स्थिति में भी काम करता है। हीरक भस्म हृदय की मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह बढ़ाता है और छाती में पीड़ा, दबाव और जकड़न के एहसास को कम करता है। यह छाती में दर्द को कम करता है। हृद्शूल में, निम्न संयोजन लाभदायक है।
उपायखुराक
हीरक भस्म4 मिलीग्राम *
पुष्करमूल250 मिलीग्राम *
श्रृंग भस्म – Shring Bhasma125 मिलीग्राम *
शहद1 चम्मच *
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* एक दिन में दो बार या तीन बार
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तीव्र मामलों में, पहली खुराक को बताये गए तरीके से दिया जाना चाहिए, लेकिन कुछ मिनटों (10 से 15 मिनट) के बाद, उपरोक्त संयोजन की एक छोटी खुराक को दर्द समाप्त होने तक तक लगातार दिया जाना चाहिए
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इसके अतिरिक्त, अगर छाती में जलन हो तो इसे ना दें। यदि सीने में जलन हो या गैस्ट्रिक रहती हो, तो उपरोक्त संयोजन में पुष्करमूल को नहीं मिलाना चाहिए। पुष्करमूल के स्थान पर, 1 ग्राम की खुराक में यष्टिमधु (मुलेठी) चूर्ण का उपयोग किया जाना चाहिए।
कैंसर और उपापचय
अन्य आयुर्वेदिक औषधियों के संयोजन में, हीरक भस्म कैंसर के लिए लाभदायक है और उपापचय को रोकता है। आमतौर पर सबसे अधिक, निम्नलिखित आयुर्वेदिक संयोजन कैंसर के लिए सहायक होता है।
उपचारएकल खुराकमिश्रण अनुपात
हीरक भस्म2.5 मिलीग्राम *100 मिलीग्राम **
स्वर्ण भस्म50 मिलीग्राम *2 ग्राम **
मुक्ता पिष्टी50 मिलीग्राम *2 ग्राम **
अभ्रक भस्म 1000 पुटी50 मिलीग्राम *2 ग्राम **
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* बताई गयी खुराक एकल खुराक है
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** ये सभी औषधियों को बताये गए अनुपात में मिश्रित किया जाना चाहिए और फिर उपयुक्त खुराक बनाने के लिए 40 छोटी पुड़ियों में विभाजित करें। प्रत्येक पुड़िया को सुबह खाना खाने से 30 मिनट पहले मलाई और मिश्री के साथ लिया जाना चाहिए। इस मिश्रण की एक पुड़िया दिन में एक बार लेना पर्याप्त खुराक है, लेकिन गंभीर मामलों और उपापचय में, कुछ रोगियों को दिन में इसे दो बार देने की आवश्यकता हो सकती है।
यह उपचार धीमा काम करता है और परिणाम मिलने में समय लगता है, कैंसर के पूर्ण उपचार के लिए 6 महीने से 12 महीने तक का समय लगता है। दूसरे, यह उपचार कैंसर के प्रारंभिक चरण में अधिक प्रभावी होता है। कैंसर के आयुर्वेदिक उपचार के शुरू होने के 2 सप्ताह के भीतर स्वास्थ्य में सामान्य सुधार देखा जा सकता है। प्रत्येक रोगी को इस उपचार के अलावा शरीर के दोषों के प्रभुत्व के अनुसार अन्य औषधियों की भी आवश्यकता होती है।
उपापचय के मामलों में, हो सकता है की यह स्थिति का उपचार ना करे, लेकिन यह शरीर में कैंसर की कोशिकाओं को आगे फैलने से रोकता है और समग्र स्वास्थ्य और आयु में सुधार करता है।
मात्रा और सेवन विधि
हीरक भस्म की न्यूनतम प्रभावी खुराक 1.25 मिलीग्राम है और अधिकतम खुराक प्रतिदिन दिन में दो बार 10 मिलीग्राम तक हो सकती है।
शिशु0.5 से 1.25 मिलीग्राम *
बच्चे1 से 2.5 मिलीग्राम *
वयस्क2.5 से 6.25 मिलीग्राम *
वयस्क (गंभीर मामलों में)6.25 से 8 मिलीग्राम *
गर्भावस्था1 से 2.5 मिलीग्राम *
वृद्धावस्था2.5 से 6.25 मिलीग्राम *
अधिकतम संभावित खुराक (प्रति दिन या 24 घंटों में)16 मिलीग्राम (विभाजित मात्रा में)
* दिन में दो बार उपयुक्त सह-औषध के साथ
किस प्रकार लें
यदि केवल हीरक भस्म लेनी है, तो इसे दूध में मिश्री चूर्ण मिलाकर लिया जाना चाहिए। आम तौर पर, हीरक भस्म को रोगों के अनुसार अन्य औषधियों के साथ दिया जाता है। इन संयोजनों में से कुछ इस लेख के लाभ और औषधीय उपयोग शीर्षक के तहत विशिष्ट स्वास्थ्य स्थिति या रोग अनुभाग में वर्णित हैं।
उपचार की अवधि
यदि थोड़े समय अर्थात एक हफ्ते से कम के लिए इसका उपयोग किया जाता है तो हीरक भस्म का कोई परिणाम नहीं दिखाई देता है। यह नियमित रूप से कम से कम 2 सप्ताह के उपयोग के बाद परिणाम दिखाता है। उचित स्वास्थ्य लाभ के लिए हीरक भस्म के दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता हो सकती है। कुछ कैंसर रोगियों को हीरक भस्म के 6 से 12 महीनों के निरंतर उपचार की आवश्यकता हो सकती है।
सुरक्षा प्रोफाइल
हीरक भस्म संभवतः सुरक्षित है। हीरक भस्म के नियमित उपयोग का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं देखा गया है। कैंसर रोगियों को हीरक भस्म, स्वर्ण भस्म आदि के साथ पूर्ण खुराक की उपचार चिकित्सा प्राप्त होती है, जो की 12 महीने या उससे भी अधिक समय तक जारी रहती हैं। कोई भी दुष्प्रभाव नहीं देखा गया है।